मंगल स्टोन क्रशर मामले में दो हफ्ते में मांगा जवाब
• एनजीटी में हुई सुनवाई, दो पक्षों ने दिए जवाब दो के बाकी
रायगढ़, 4 सितंबर। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने खरसिया के बानीपाथर में मंगल स्टोन क्रशर के अवैध खनन मामले में संज्ञान लिया है। इसकी सुनवाई भोपाल सेंट्रल जोन बेंच में सोमार को हुई। एनजीटी ने चार पक्षकारों से जवाब मांगा था। दो ने जवाब दे दिए जबकि अन्य दो को दो सप्ताह में जवाब देने को कहा है। लीज एरिया से अधिक भूमि पर खनन के मामले को एनजीटी ने बेहद गंभीर माना है।
खरसिया के बानीपाथर में मंगल स्टोन क्रशर संचालक ने के बिना अनुमति के लीज एरिया से अधिक क्षेत्रफल में खनन करने के मामले में प्रकाशित समाचार पर एनजीटी ने प्रकरण दर्ज किया है। मंगल स्टोन क्रशर संचालक ने डेढ़ हेक्टेयर में लाइमस्टोन खनिपट्टा की अनुमति ली है।
खरसिया के बानीपाथर में मंगल स्टोन क्रशर संचालक ने के बिना अनुमति के लीज एरिया से अधिक क्षेत्रफल में खनन करने के मामले में प्रकाशित समाचार पर एनजीटी ने प्रकरण दर्ज किया है। मंगल स्टोन क्रशर संचालक ने डेढ़ हेक्टेयर में लाइमस्टोन खनिपट्टा की अनुमति ली है। वर्ष 2017 से 2047 तक 30 साल के लिए खनिपट्टा स्वीकृत किया है। खनं 541/2, 571/2, 572/1, 572/3, 575/2, 572/4, 571/4, 571/1ख, 572/5, 543, 571/3, 571/4, 544/1, 540, 571/4, 573 और 574 कुल रकबा 1.524 हे. में लीज स्वीकृत हुआ है। नियम यह है कि केवल इतनी ही भूमि पर लाइमस्टोन खनन व क्रशर स्थापित करना है। लेकिन आसपास की करीब दस एकड़ जमीन पर अतिरिक्त खनन कर लिया गया है। लीज एरिया से अधिक खनन होने के बावजूद खनिज विभाग केवल स्टॉक का एसेसमेंट करता है।
इस मामले में केलो प्रवाह ने 6 मई 2024 को खबर प्रकाशित की थी। इस पर एनजीटी ने स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा कि यह प्रकरण पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 और माइंस एंड मिनरल्स एक्ट 1957 क.. उल्लंघन है। एनजीटी ने इस मामले में सदस्य सचिव सीईसीबी रायपुर, सदस्य सचिव सीपीसीबी दिल्ली, कलेक्टर और संचालक मंगल स्टोन क्रशर को पक्षकार बनाया है। इसमें से सीईसीबी और क्रशर संचालक ने जवाब दिए हैं जबकि दो अन्य के जवाब बाकी हैं। सोमवार को एनजीटी ने दो सप्ताह का अतिरिक्त समय देते हुए 17 सितंबर को अगली सुनवाई तय की है।
कभी किसी खनिपट्टे की जांच ही नहीं
मंगल स्टोन क्रशर को मिली लीज स्वीकृति एरिया के बाहर भी लाइमस्टोन निकाला गया है। ऐसा केवल रायगढ़ में ही नहीं बल्कि सारंगढ़-बिलाईगढ़ के भी गौण खनिज खदानों में भी है। पूर्व में अविभाजित रायगढ़ जिले में खनिज विभाग ने कभी भी खनिपट्टों के वास्तविक क्षेत्रफल की जांच ही नहीं की। यही वजह है कि खनन माफिया हावी हो गए।
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